वृक्षों की मासूमियत उस छाल में
निहित हो सकती है
या उस दर्प में जिसके सहारे
वे ज़मीन पर खड़े हैं।
वे जब-जब हिलते हैं आत्मस्तवन में
उनका झूठ उन्हें सहारा देता है।
तूफ़ान में बचे रहना
नहीं हो सकती ऋतुओं की उदारता।
हर ऋतु में वॄक्ष हिलता है
और अपने पुण्य बाँटता है
महज
एक तकलीफ़ की शक्ल में ।