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वृथा यह कल की चिन्ता, प्राण / सुमित्रानंदन पंत

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वृथा यह कल की चिन्ता, प्राण
आज जी खोल करें मधुपान!
नीलिमा का नीलम का जाम
भरा ज्योत्स्ना से फेन ललाम!
इंदु की यह सलज्ज मुसकान
रहेगी जग में चिर अम्लान,
हमारा पर न रहेगा ध्यान,
व्यर्थ फिर कल की चिंता, प्राण!