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वृद्धावस्था / सुरंगमा यादव

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1
साँझ की बेला
नीड़ निहारे पंछी
बैठ अकेला।
2
वृद्ध लाचार
अपनों की उपेक्षा
देह भी भार।
3
धुंधली आँखें
कर गया किनारा
आंख का तारा।
4
हारा है मन
प्राणों का बोझ अब
ढोता है तन।
5
विवश बहे
वात्सल्य नयन से
वृद्धाश्रम में।
6
बुढ़ापा आया
कितने समझौते
संग ले आया।
7
हो कोई वय
हृदय का उल्लास
न हो विलय।
8
घर में पोता
चॉकलेट की शॉप
भूलें न बाबा।
9
आपसी द्वन्द्व
कितने ही स्वछन्द
हो गए रिश्ते।
10
जीवन संध्या
एकाकीपन साथ
शिथिल गात।
11
बाग लगाए
पितरों ने श्रम से
हम सुख से।
12
जीवन संध्या
लिखते समाहार
काँपते हाथ।
13
जीर्ण शरीर
भटक रहा मन
हो के अधीर।
14
बदली रीत
पुत्र दे रहा सीख
पिता को आज।
15
अपनों द्वारा
छली गईं आशाएँ
बड़ी व्यथाएँ।
16
नीड़ उदास
शेष हैं आसपास
बस स्मृतियाँ।
17
भूले तपन
बुजुर्गों की छाया में
मुदित मन।
18
ढलती साँझ
ममता की पुकारें
बेसुध फिरें।
19
जीवन भार
दवा की भरमार
रहें न याद।
20
है विश्वग्राम
घर के वृद्धों संग
दूरी तमाम।
21
शिथिल तार
सुने कौन झंकार
वीणा उदास।
22
क्यों ये उपेक्षा
वृद्धावस्था से वास्ता
अगला रास्ता।
23
जो दें उत्कर्ष
उन्हें हमने दिया
मात्र हाशिया।
24
भूख है शांत
झिड़कियाँ खाकर
प्यास न पास।
25
जीवन काव्य
नूतन अभिव्यक्ति
सेवानिवृत्ति।
26
युवा विकृति
बुजुर्गों की उपेक्षा
नव संस्कृति।
27
द्वार की ड्यौढ़ी
मूकदर्शक बने
बूढ़े नयन।
28
छोड़ें मलाल
पीढ़ी का अंतराल
करें स्वीकार।
29
नजरें पैनी
सयाने बच्चों पर
द्वन्द्व का घर।
30
वृद्ध अवस्था
नए हाथों को सौंपें
अब व्यवस्था।
31
पेंशन पाते
पर रख न पाते
अपने हाथ।