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वेणु वादन के लिये हरि को बुलाना आ गया / रंजना वर्मा
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वेणु वादन के लिए हरि को बुलाना आ गया।
साँवरे से प्रीति का बंधन निभाना आ गया॥
लोग हैं कहते सदा निस्वार्थ हो पूजन करो
किंतु हो कैसे तुम्हीं से दिल लगाना आ गया॥
मैं नहीं मीरा न राधा सूर या रसखान ही
मन सुमन लेकिन चरण हरि के चढ़ाना आ गया॥
मैं न मथुरा द्वारिका ही या कि वृंदावन गयी
पर चरण रज श्याम की सिर पर सजाना आ गया॥
इंद्रियाँ चंचल तुरग मन भी चपल है सारथी
नाम ले घनश्याम का रथ को बढ़ाना आ गया॥
है यहाँ यमुना तुम्हारी किंतु मैली हो गयी
प्रिय हृदय-यमुना निकट तुमको बसाना आ गया॥
मोह तरु की डालियाँ करने लगीं भयभीत हैं
लग रहा है आखिरी अपना ठिकाना आ गया॥