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वेदनाओं से हम चूर हैं / सोनरूपा विशाल
Kavita Kosh से
वक़्त से इतने मजबूर हैं,
वेदनाओं से हम चूर हैं।
कौन ज़िन्दा कहेगा हमें
चेतना से अगर दूर हैं।
अगले पल का भरोसा नहीं,
फिर भी कल पे वो मग़रूर हैं।
दूसरों से गिला बाद में,
ख़ुद को हम कितने मंज़ूर हैं।
जिनकी आँखों में आँसू नहीं,
दर्द से वो भी भरपूर हैं।
ज़िन्दगी से जो उकता गए,
सोचिए कितने मजबूर हैं!
उनकी आँखें न बेनूर हों,
जिनकी आँखों के हम नूर हैं।
खो चुके हैं सुकूँ, जबसे हम,
सूचनाओं से भरपूर हैं।