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वेदना विगलित व्यथाएँ हैं / चेतन दुबे 'अनिल'
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वेदना विगलित व्यथाएँ हैं।
अश्क़पूरित आस्थाएँ हैं।
गंधवाही गीत में तेरी
आस्थामय अर्चनाएँ हैं।
ज़िन्दगी से क्या कहूँ अब मैं
जब चतुर्दिक वर्जनाएँ हैं।
पीर जब से हो गई पागल
साँस में भी सर्जनाएँ हैं।
बिन तुम्हारे जग अँधेरा है
कल्पनाएँ - कल्पनाएँ हैं।
मत उघारो बंद पलकों को
भावभीनी भवनाएँ हैं।
इन हमारी गीत ग़ज़लों में
व्यथित मन की वेदनाएँ हैं।