जिस्म की कब्र में
रोज नया मुर्दा दफनाते हुए
बेजान हो गया है तन
सड़क सी जिंदगी
रोंदते है जिसे
अनगिनत वाहन
धुआं छोड़ते हुए
और थूककर
गन्दा बनाते लोग
कुचलते हैं आत्मा को
जिसे आती है
ख़ुद पर घिन्न
फ़िर भी पीने के लिए
समाज का जहर
नीलकंठ की तरह
तैयार हैं
तंग गली के
मटमैले परदों के पीछे
धड़कते मुर्दे !