भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वेहड़े आ वड़ मेरे / बुल्ले शाह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भावें जाण ना जाण वे, वेहड़े आ वड़ मेरे।
मैं तेरे कुरबान वे, वेहड़े आ वड़ मेरे।

तेरे जिहा मैनूँ होर ना कोई,
ढूँढ़ा जंगल बेले रोही।
ढूँढ़ा ताँ सारा जहान वे, वेहड़े आ वड़ मेरे।

लोकाँ दे भाणें चाक मही दा,
राँझा ताँ लोकाँ विच्च कहींदा।
साडा ताँ दीन ईमान वे, वेहड़े आ वड़ मेरे।

मापे छोड़ लगी लड़ तेरे,
शाह इनायत साईं मेरे।
लाईआँ दी लज्ज<ref>शर्म</ref> पाल वे, वेहड़े आ वड़ मेरे।

शब्दार्थ
<references/>