वे अभी व्यस्त हैं / अरुण देव
जब गाँधी अहिंसा तराश रहे थे
आम्बेदकर गढ़ रहे थे मनुष्यता का विधान
भगत सिंह साहस, सच और स्वाध्याय से होते हुए
नास्तिकता तक चले आए थे
सुभाषचन्द्र बोस ने खोज लिया था ख़ून से आज़ादी का रिश्ता
नेहरु निर्मित कर रहे थे शिक्षा और विज्ञान का घर
फतवों की कँटीली बाड़ के बीच
सैय्यद अहमद खान ने तामीर की ज्ञान की मीनारें
तब तुम क्या कर रहे थे?
तुम व्यस्त थे हिंदुत्व गढ़ने में
लिखने में एक ऐसा इतिहास जहाँ नफ़रतों की एक बड़ी नदी थी
सिन्धु से भी बड़ी
तुम तलाश रहे थे एक गोली, एक हत्यारा और एक राष्ट्रीय शोक
सहिष्णुता की जगह कट्टरता
आधुनिकता की जगह मृत परम्पराएँ
चेतना की जगह जड़ता
तुम माहिर हो उन्माद रचने में
किसान, श्रमिक, युवा, स्त्री, वंचित जब भी तुमसे कुछ कहना चाहते
उधर से एक मशीनी आवाज़ आती
आप जिनसे सम्पर्क करना चाहते हैं वे अभी व्यस्त हैं?