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वे कितनी घृणा करते हैं हमसे / सुजाता

Kavita Kosh से
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वे आत्ममुग्ध हैं,
वे घृणा से भरे हैं।
वे पराक्रम से भरपूर हैं।
नहीं जानते अपनी गहराई।

जो उपलब्ध हैं स्त्रियाँ उन्हें
वे हिकारत से देखते हैं,
और थूक देते है उन्हें देख कर
जिन्हें पाया नही जा सका ।

वे ज्ञानोन्मत्त हैं
ब्रह्मचारी !
कोमलांगिनियों के बीच
योगी से बैठे हैं
अहं की लंगोट खुल सकती है कभी किसी भी वक़्त।
उन्हे नहीं पता कि
हमें पता है
कि वे कितनी घृणा करते हैं हमसे
जब वे प्यार से हमारे बालों को सहला रहे होते हैं।

उन्हें पहचानना आसान होता
तो मैं कह सकती थी
कि कब कब मैंने उन्हें देखा था
कब कब मिली थी
और शिकार हो गयी थी कब!