भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वे घर गए / माया एंजलो
Kavita Kosh से
वे घर गए और अपनी पत्नियों से कहा
कि अपनी पूरी ज़िन्दगी में एक बार भी
मेरे जैसी लड़की नहीं देखी
फिर भी …वे अपने घर गए .
उन्होंने कहा कि मेरा घर चमचमा रहा था
जो कुछ कहा मैंने उसमे एक भी शब्द भद्दा नहीं था
एक रहस्य था मेरे व्यक्तित्व में
फिर भी… वे अपने घर गए .
मेरी तारीफ़ सभी पुरुषों के लबों पर थी
उन्हें मेरी मुस्कान , मेरी हाज़िरज़वाबी
मेरे नितम्ब पसन्द थे
उन्होंने रात गुज़ारी – एक, दो या फिर तीन
फिर भी ……
अँग्रेज़ी से अनुवाद : मणि मोहन