वे चेहरे जो गिरे मेरे अंधकार में / नीलोत्पल
वे चेहरे जो गिरे मेरे अंधकार में
मुझे सब याद है
वे चेहरे जो गिरे मेरे अंधकार में
पत्तों की तरह
जिन्हें मैंने पाया और भूल गया
मैं उन्हें याद करता हूं
ये इतने सारे अनजान अपने
जिनसे मिला
सतह पर थिर परछाईयों वाले समय में
हमने यात्राएं की छोटी-छोटी
वे बताते रहे
कहां-कहां गिरे हैं समुद्र के आंसू
कैसे और कितने रूपों में
हम पैदा हुए
और बदलते गए दावे, शिकवे और विचार
हमने गिरने और संभलने के बारे में बातें की
खेतों की लंबाई वहां खत्म हुई
जहां बांधी गई चिड़ियाओं की उड़ानें
हमने एक-दूसरे से नहीं पूछा
लेकिन जानती थीं आँखे वहां कितना पानी
उतर गया जड़ों-सी गहराई में
और हम उलझते गए
मुझसे पूछोगे कहां हैं ये लोग
मैं कहूंगा- मुझे याद नहीं उनके पते
ये लोग, तमाम तरह के मेलों, उत्सवों में
चुपचाप अपना दुख टांक कर
अलग होने वाले
शवयात्रा में फूल सहेजकर उड़ाने वाले,
मंडियों में अनाज की तरह बिखरने वाले
जगह-जगह पर उंडेलते गए अपने सोते
ये एक जगह के नहीं थे
ये एक उद्देश्य के नहीं थे
ये थे तो अगर मेरे आंसुओं की जमी
परत में हलचल कर गए
ये सब जगह के थे
ये सब तरह के थे
बस ये किसी तरह रूके नहीं
हम मिलते रहे सदियों के पार भी