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वे जब-जब राजपथ की ओर मुड़े / पंकज चौधरी

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वे जब-जब राजपथ की ओर मुड़े
उनके बारे में प्रचार किया गया कि
उनके पास हाथ तो हो सकते हैं
पर खोपड़ी कहाँ!
उनके सिर पर ताज तो हो सकता है
पर वैसा गौरव कहाँ

उनकी ही पूरी दुनिया है
क्या है कोई ऐसा विश्वासभाजन?
वे दुनिया को चला तो सकते हैं
पर वैसा चालक कहाँ
दुनिया के प्रति वे
वफ़ादार भी हो सकते हैं
क्या हैं कोई ऐसा माननेवाले माननीय?

उनके पास कुरूपता हो सकती है
सुंदरता नहीं
उनकी जगह नरक में हो सकती है
स्वर्ग में नहीं
वे असुर हो सकते हैं
सुर नहीं

उनका स्थान पदतल है
शिरोपरि नहीं
उनका राहु हो सकता है
चंद्रमा नहीं!

वे कौन थे
और किनके बारे में
ऐसा प्रचार करते आ रहे थे
आखि़र उनका मकसद क्या था?