भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वे जानते हैं / उत्‍तमराव क्षीरसागर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पार करनी थी नदी
तो पुल बाँधे
पार करना था सागर
तो तैरने के गुर साधे
पार करना था जीवन
तो रि‍श्‍ते-नाते बाँधे
पार करने थे जन्‍म-जन्‍मांतर
तो धरम-करम के सुर साधे


लेकि‍न जि‍न्‍हें
सबकुछ बना-बनाया मि‍ला, और
न तो कुछ बाँधना था न साधना
वे नहीं सम्‍हाल पाये कि‍सी बंधन को
उन्‍होंने न पुल बचाया न ही हुनर
न रि‍श्‍ते-नाते और न ही धरम-करम ।
तय करने के लि‍ए कोई दूरी नहीं थी
फि‍र भी भागे-बेतहाशा भागे वे
नदी से, सागर से और
अपने जन्‍म-जन्‍मांतर से


यद्यपि‍
वे जानते हैं
मुक्‍ति‍, ऐसे नहीं मि‍लती
                          - 2000 ई0