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वे जो मरते नहीं / योसिफ़ ब्रोदस्की

वे जो मरते नहीं ज़िन्दा रहते हैं
साठ बरस तक, सत्‍तर तक,
उपदेश देते हैं
लिखते हैं संस्‍मरण
और उलझ जाते हैं अपनी ही टाँगों में ।
मैं ध्‍यान से देखता हूँ उनकी मुखाकृति को
जिस तरह देखते थे मिक्‍लूखा मक्‍लाई
पास आते वनवासियों के गोदने को ।

मिक्‍लूखा मक्‍लाई : प्रख्यात रूसी नृकुलविज्ञानी (1846-1888)