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वे तीस साल / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
कुछ नहीं किया मैंने
अदालत में
सिवाए बकवास के
मेज और कुर्सी को सुनाए हैं मैंने
कत्ल के कथानक
लोमहर्षक वीभत्स भयानक
दिल और दिमाग से उँडेले हैं मैंने
गरम ठंडे आँसुओं के सागर
बेदर्द पत्थर फर्श के
न पसीजे
साल-पर-साल जीवन के-
तीस साल चले गए
सचमुच वे तीस साल
मेरे तीस बेटे थे
न्याय की लड़ाई में मारे गए होम गए
अब तक कुछ हुआ नहीं
छै की दहाई अब शून्य की इकाई के लिए
बैठी है मेरे पास
मेरे लिए।
रचनाकाल: १०-०४-१९७५