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वे नाम पूछते हैं / मोना गुलाटी

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वे मेरा नाम पूछते हैं :
मेरा नाम : मेरे बाप का नाम,
मेरा गोत्र, मेरा संस्कार,
मेरी धरती का नाम, मिट्टी का नाम,

वे उसे देश कहते हैं
और छपाक् की आवाज़ के साथ कानों से
पिघलते हुए चमड़ी तक उतर आते हैं : वे
पूछते हैं मेरा नाम :

मेरा पता : वे पूछते हैं फूलों का नाम,
पतों का नाम : महक और गन्ध का नाम,
 चमड़ी और चमड़ी के रंग का नाम :
वे नाम पूछते हैं : उन्हें नामों का सैलाब

चाहिए : वे कर देना चाहते हैं सभी कुछ टंकित :
दीवारों में, सड़कों पर :

वे फैले हुए हाथों,
खुले हुए जिस्म,
ऐंठती हुई ऐड़ियों,
झुकी हुई कमर,
बेबस बुझी आँखों को नहीं देखते :
वे नहीं देखते कि ख़ाल कितनी ढलक गई है रानों तक,

वे नहीं देखते रंग :
वे कुछ नहीं देखते,
कुछ नहीं सूँघते :
वे नाम पूछते हैं : पूछते हैं नाम

टंकित कर देने के लिए :
शब्द आकाश को भेदकर आते हैं
और शताब्दी को
चीरने लगते हैं, झरनों के
आर-आर फैल जाते हैं,
पहाड़ की चोटियों पर चढ़ जाते हैं :

वे शब्द नहीं
ढूँढ़ते : तुम्हें चाहिए एक ठोस नाम, जो शताब्दी की
तमाम चिरांध को अपने नासापुटों में दबाए,
काल से आगे निकाल जाए :

वे नाम पूछते हैं, पूछते हैं
नाम, निष्कासन के लिए

वे मात्र नाम
पूछते हैं : पूछते हैं :
पूछते हैं नाम :
काल, देश, गंध के लिए :
कोई नाम,
एक नाम।

मैंने उन्हें बताया है :
वे चाहे कोई नाम
चुन लें : मेरे पास नाम नहीं है
गोत्र और कुल और
संस्कार और मिट्टी का नाम
नहीं है मेरे पास :

मेरे पास कुछ नहीं है :
सिवाय रीढ़ की हड्डी के साथ
चिपकी हुई मज्जा के, जो
न मालूम कब छिटक जाए
और रौशनी की चुभती हुई दीवार बन जाए,
या बेधता हुआ

आकाश बन जाए।
पर उन्हें नहीं होता विश्वास : वे कोहराम
का पहाड़ मेरे पास लाकर खड़ा कर देते हैं ।
उन्हें मेरा नाम, पता चाहिए ।