भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वे बातें / जय छांछा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुनो ना मेरी प्राण प्रिय !
बहुत हैं तुम्हारी मनपसंद बातें
बहुत हैं तुम्हारे अनुसरण करने वाली बातें
अनगिनत हैं तुम्हे कहने वाली बातें ।

सुनो ना मेरी प्राण प्रिय!
विस्तारित रूप में कहने लगूँ तो
महाकाव्य या उपन्यास ही बन जाएगा
धैर्य का बाँध फूटकर
कहीं इधर-उधर बहने न लग जाए ।
इसीलिए
हाइकू शैली में ही कहता हूँ
सुनो न मेरी प्राण प्रिय
रात को अपना ही समझकर
संवेदना में रोने वाली
ओस की बूंदों के साथ आँसू बदलकर
निर्दम्भ मुस्कुराने वाली
फूल जैसी तुम्हारी वाणी
बहुत ही अच्छी लगती है मुझे ।

मूल नेपाली से अनुवाद : अर्जुन निराला