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वे बाहर से हमें देख रहे थे / रुस्तम
Kavita Kosh से
वे बाहर से हमें देख रहे थे।
हम एक चमचमाते हुए रेस्तराँ में थे
जिसके दरवाज़े काँच के थे।
हम दूर से
टहलते हुए से
उनकी ओर बढ़े थे।
वे तब भी हमें देख रहे थे
और तब भी जब हम
रेस्तराँ में घुसे।
हम सोफ़े पर बैठ गए।
हमने चाय और ठण्डी कॉफ़ी के लिए कहा।
फिर हम अपनी पुस्तकें निकालकर पढ़ने लगे।
वे एक छोटे-से ट्रक के यात्री थे जो थोड़ी देर के लिए वहाँ रुका था,
वहाँ सड़क के किनारे।
ट्रक धूल से भरा था।
वे बाहर से ही हमें देख रहे थे, लगातार देख रहे थे।
उनसे आँख मिलाऊँ, यह माद्दा मुझमें नहीं था।