वे महान नहीं थे / संतलाल करुण
यदि तुम्हारा आशय
सिकन्दर और उसके जैसे महानों से है
तो मुझसे मत पूछो
महानों के नाम।
जिन्होंने अपने खेतों में काम किया
अपने घर का अन्न खाया
अपने घड़े का पानी पिया
अपने गाँव की सीमा कभी पार नहीं की
ऐसों के हत्यारे हैं तुम्हारे महान।
सुबह की हवा ऐसे कथित महानों को
कभी ताज़ा नहीं लगी होगी
साँझ कभी उतरी नहीं होगी उनके घर
उन्होंने कभी जाना नहीं होगा
कितनी भोली होतीं हैं रातें
कितने हँसमुख होते हैं दिन
उनके तो चौबीसों घण्टे कानों में बजता रहा होगा बाजा
अहं के जय-पराजय का
वे कैसे महान हो सकते हैं।
किताबें भला किसी की शत्रु हो सकतीं हैं
वे तो अनमोल अक्षरों के मोती बिखेरकर
सच्चे मित्र-जैसा खुल जाती हैं सामने सब के
ऐसे मित्रों के गढ़ जलाकर ख़ाक कर देना
राज, ताज़ और जवान बोटी के लिए
दुनिया के खिले, आबाद हिस्सों में
भूखे भेड़ियों की तरह घात लगाना, चक्कर काटना
कभी महानता नहीं हो सकती।
उन्हें वीर कहना वीरता का अपमान है
असल में उनकी दिमाग़ी हालत ठीक नहीं थी
जब उन्हें ज़रूरत थी दवा-दारू की
तब वे अपने ही बीमार सपनों से टकराए
और टकराहट की राह में आनेवाले
खेत-खलियान, घर-बार, बाग़-बगीचे उजाड़ते गए।
कभी देखा है पाकड़ की कोंपलें
या नीम की फूली डाल
आम का बौर ध्यान से देखा है
जो कभी किसी को नुकसान नहीं पहुँचाते
इतराते हैं तो अपनी सीमाओं में
जीते हैं तो सिर्फ़ औरों के लिए
क्या ऐसे निर्दोष थे तुम्हारे वे महान।
तुम तो बस
खून से भीगे साँय-साँय करते युद्ध-क्षेत्रों में
कटे सिरों के बीच शीर्षासन लगाकर
अपने बाएँ पैर के अँगूठे से
हवा में महानता का इतिहास लिखते रहे हो।
अब भी समय है
दुरुस्त करो महानता की अपनी परिभाषा
जिसे तोतों की तरह लोग सदियों से रट रहे हैं
शीर्षासन छोड़ सीधी करो अपनी दृष्टि
कम-से-कम बालपोथियों में
तुम उन्हें महान मत लिखो।