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वे ही होगें योद्धा / प्रमोद कुमार शर्मा

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उनके हाथों में होगी पृथ्वी
होठों पर दुआएं और आँखो में करूणा
इतनी कि जिसमें भीगकर कोई भी
अणु-बम हो जाए फु स्स।
उन्हें देखकर भय नहीं
बल्कि उमड़ेगा प्रेम।
प्रेम-जो हम करना भूल गए हैं
किंतु उन्हें देखकर सहसा
कहीं से खुलने लगेंगे याद्दाश्त के दरवाजे
हम पशु नहीं-मनुष्य हैं।
मनुष्य-जिसकी खोज में ही
जपते होंगे वे नाम
लिखते होंगे कविता
बनाते होंगे चित्र
और करते होंगे
पृथ्वी के लिए शुभ का चिन्तन-
वे ही होंगे सच्चे योद्धा
उन्हें ही लडऩा होगा तीसरा विश्व युद्ध।
-हुए बिना क्रुद्ध