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वे / केशव तिवारी
Kavita Kosh से
वे जो लंबी यात्राओं से
थककर चूर हैं उनसे कहो
कि सो जाएँ और सपने देखें
वे जो अभी-अभी
निकलने का मंसूबा ही
बांध रहे हैं
उनसे कहो कि
तुरंत निकल पड़ें
वे जो बंजर भूमि को
उपजाऊ बना रहे हैं
उनसे कहो कि
अपनी खुरदरी हथेलियाँ
छिपाएँ नहीं
इनसे खूबसूरत इस दुनिया में
कुछ नहीं है