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वैलेंटाइन / सरोज कुमार
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					वैलेंटाइन साहब
जब पैदा नहीं हुए थे 
तब भी हम प्यार करते थे!
हाँ ये जरूर है कि 
थोड़ा शरमाते थे 
थोड़ा लजाते थे
थोड़ा डरते थे!
किसी वैलेंटाइन की प्रतीक्षा में 
किसी का प्यार का 
कभी
स्थगित नहीं रहा!
प्यार तो हमारी शिराओं में 
बहने वाली नदी है 
साँसों को स्वर देने वाली 
हवा है 
अंतरंग की ऊष्मा है 
धूप है!
गुलाब थमा देने से नहीं हो जाता प्यार 
प्यार तो खुद गुलाब है!
वह जब होता है!
हम 
गुलाब की पंखुड़ियाँ बन जाते है!
प्यार का मुहूरत 
पंचांग की अनुमति से नहीं आता 
जिस दिन भिगो
प्यार की खुशबू से
वह दिन
वैलेंटाइन-वैलेंटाइन
और बिना भीगे तो 
तमाम ग्रीटिंग कार्ड व्यर्थ 
सारे उपहार 
बेमतलब!
 
	
	

