वैवाहिक अनुबंध / बाबा बैद्यनाथ झा
वर-कन्या दोनों मण्डप पर, खाते हैं सौगंध।
बन जाता तब पति-पत्नी का, वैवाहिक अनुबंध॥
वैदिक मन्त्रों को पढ़वाकर, होता श्रेष्ठ विवाह।
देव देवियाँ सहित स्वजन भी, दें आशीष अथाह।
अग्नि देव को साक्ष्य मानकर, लेते फेरे सात।
सात वचन की शपथ दिलाकर, होता यज्ञ समाप्त।
सात जन्म का बन जाता है, यह अनुपम सम्बंध।
बन जाता तब पति-पत्नी का, वैवाहिक अनुबंध॥
करना पड़ता है दम्पति को, जीवन भर निर्वाह।
अर्थ धर्म सह काम मोक्ष की, पूरी करते चाह।
साथ भोगते सुख-दुख दोनों, करते हैं संघर्ष।
लक्ष्य साधकर खटते दोनों, पा लेते उत्कर्ष।
हो विचार वैषम्य कभी भी, बना रहे मनबंध।
बन जाता तब पति-पत्नी का, वैवाहिक अनुबंध॥
वंशवृद्धि आवश्यक होती, पाते वे सन्तान।
पालपोस कर जिसे पढ़ाते, दिलवाते सद्ज्ञान।
कर्म सहित करते रहते वे, सदा इष्ट का ध्यान।
मानव जन्म सफल करवाते, भक्तों के भगवान।
देख भक्त का पूर्ण समर्पण, करते ईश प्रबंध।
बन जाता तब पति-पत्नी का, वैवाहिक अनुबंध॥