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वैषम्य / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
हर व्यक्ति का जीवन
नहीं है राजपथ —
उपवन सजा
वृक्षों लदा
विस्तृत
अबाधित
स्वच्छ
समतल
स्निग्ध !
सम्भव नहीं
हर व्यक्ति को
उपलब्ध हो
ऐसी सुगमता,
इतनी सुकरता।
सम दिशा
सम भूमि पर
आवास सबके हैं नहीं प्रस्थित,
एक ही गन्तव्य
सबका है नहीं
जब
अभिलषित।
कुछ को
पार करनी ही पडेंगी
तंग-सँकरी
कण्ट-कँकरीली
घुमावोंदार
ऊँची और नीची
जन-बहुल
अंधारमय
पगडण्डियाँ — गलियाँ
पसीने-धूल से अभिषिक्त,
प्रति पग पंक से लथपथ।
नहीं,
हर व्यक्ति का जीवन
सकल सुविधा सहित
आलोक जगमग
राजपथ !
जब भूमि बदलेगी,
मार्ग बदलेगा !