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वैसी सुरक्षा / लीलाधर जगूड़ी
Kavita Kosh से
वैसी सुरक्षा मुझे असुरक्षा में डाल देती है
मूर्तियाँ सुरक्षित हैं
क्योंकि वे दाना पानी नहीं लेतीं
और गोबर इत्यादि नहीं करतीं
अगर मैं मनुष्य होकर नहीं रह सकता
वनस्पति होकर नहीं रह सकता
जल और वायु होकर नहीं रह सकता
हजारों प्रकाश वर्ष लंबी किरण बनकर
नहीं रह सकता विराट अमूर्त में
तो मूर्ति बनकर भी मैं सुरक्षित नहीं हूँ
मूर्ति बनते ही
इच्छाएँ सारी खत्म हो जायेंगी
सपने सारे मर जायेंगे
(एक मूर्ति होगी जो मैं नहीं होऊँगा)