भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वैसे तो अपने बीच नहीं है / देवी नांगरानी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वैसे तो अपने बीच नहीं है कोई ख़ुदा
लेकिन ख़ुदी ने दोनों में रक्खा है फासला

कोशिश वो भूलने की करे लाख तो भी क्या
डर बनके दिल में पलती है इन्सान की ख़ता

ये ज्वार-भाटे आते ही रहते हैं ज़ीस्त में
हर रोज़ आके जाते हैं देकर हमें दग़ा

तेरे ही ऐतबार में डूबी हुई थी मैं
तुझ पर ये ऐतबार ही मुझको डुबो गया

भंवरों के इन्तज़ार में मुरझा गए सुमन
देखा किये हैं फिर भी वो भंवरों का रास्ता