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वैसे तो अपने बीच नहीं है / देवी नांगरानी
Kavita Kosh से
वैसे तो अपने बीच नहीं है कोई ख़ुदा
लेकिन ख़ुदी ने दोनों में रक्खा है फासला
कोशिश वो भूलने की करे लाख तो भी क्या
डर बनके दिल में पलती है इन्सान की ख़ता
ये ज्वार-भाटे आते ही रहते हैं ज़ीस्त में
हर रोज़ आके जाते हैं देकर हमें दग़ा
तेरे ही ऐतबार में डूबी हुई थी मैं
तुझ पर ये ऐतबार ही मुझको डुबो गया
भंवरों के इन्तज़ार में मुरझा गए सुमन
देखा किये हैं फिर भी वो भंवरों का रास्ता