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वो अपना है पराया तो नहीं है / सिया सचदेव
Kavita Kosh से
वो अपना है पराया तो नहीं है
मुझे दिल से निकाला तो नहीं है
तुम्हारे दिल तलक आऊं तो कैसे
ये कोई आम रस्ता तो नहीं है
तुम्हारे अक्स जैसा कोई चेहरा
मेरी आँखों में ठहरा तो नहीं है
ग़लतफ़हमी दिलो में है यक़ीनन
मगर रिश्ता ये टूटा तो नहीं है
बहुत चर्चे हैं उसकी सादगी के
मगर वो शख्स अच्छा तो नहीं है
वो मेरा दर्द समझे भी तो कैसे
मेरे जैसा वो तन्हा तो नहीं है
मिलेगी उसको भी एक रोज़ मंज़िल
थका ही है वो भटका तो नहीं है
है दुनिया खूबसूरत तो सिया ये
मेरे दिल की तमन्ना तो नहीं है