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वो अपने हाल पे राज़ी नहीं है / श्याम कश्यप बेचैन
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वो अपने हाल पे राज़ी नहीं है
नहीं तो कोई मोहताजी नहीं है
इसे यूँ ही समझ हल्के न लेना
मेरी चुप्पी में लफ़्फ़ाज़ी नहीं है
गुलों की फ़स्ल तो अच्छी है लेकिन
हवा इस बाग़ की ताज़ी नहीं है
वहाँ जाने लगा लाचार होकर
जहाँ जाने का मेरा जी नही है
उकेर आया हूँ मैं पत्थर में ख़ुद को
मेरी यह खोज अंदाज़ी नहीं है