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वो आफ़ताब मेरा / राजश्री गौड़

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वो आफ़ताब मेरा, माहताब जैसा है,
बदन वो आग पे रखे गुलाब जैसा है।

न तुमको याद करूं और न याद ही आऊँ,
ये फैसला तो तुम्हारा नवाब जैसा है।

वो जब से दूर हुये हैं जमाना गुज़रा है,
कि उन से मिलना मिलाना तो ख़्वाब जैसा है।

नज़र मिलाके मेरे दिल को बेकरार किया।
वो मरमरी सा बदन भी च़नाब जैसा है।

कभी न पढ़ जो सके हैं मेरी आँखों में,
बसा है दिल में मेरे वो ही ख़ाब जैसा है