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वो आसमान के तारे कहीं हुए गुम हैं / कैलाश झा 'किंकर'

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वो आसमान के तारे कहीं हुए गुम हैं
सभी हसीन नजारे कहीं हुए गुम हैं।

चलो यहाँ से कहीं दूर हम भी चलते हैं
जिन्हें नयन थे निहारे कहीं हुए गुम हैं।

अवाम ने जो सुनाया है फ़ैसला अपना
अजीज दोस्त हमारे कहीं हुए गुम हैं।

क़दम-क़दम पर मिला साथ भी नसीहत भी
मगर वह मूक इशारे कहीं हुए गुम हैं।

ग़लत बयान से पकते थे कान महिनों से
तमाम आज वह नारे कहीं हुए गुम हैं।

चले थे साथ सफ़र में खुशी-खुशी घर से
मुकाम पर वह सहारे कहीं हुए गुम हैं।