भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वो आ जाए ख़ुदा से की दुआ अक्सर / सतपाल 'ख़याल'
Kavita Kosh से
वो आ जाए ख़ुदा से की दुआ अक्सर
वो आया तो परेशाँ भी रहा अक्सर
ये तनहाई ,ये मायूसी , ये बेचैनी
चलेगा कब तलक ये सिलसिला अक्सर
न इसका रास्ता कोई ,न मंज़िल है
‘महब्बत है यही’ सबने कहा अक्सर
चलो इतना ही काफ़ी है कि वो हमसे
मिला कुछ पल मगर मिलता रहा अक्सर
वो ख़ामोशी वही दुख है वही मैं हूँ
तेरे बारे में ही सोचा किया अक्सर
ये मुमकिन है कि पत्थर में ख़ुदा मिल जाए
मिलेगी बेवफ़ा से पर ज़फ़ा अक्सर