वो इक मासूम सी लड़की बुज़ुर्ग़ों की दुआ जैसी / रविकांत अनमोल
वो इक मासूम सी लड़की बुज़ुर्ग़ों की दुआ जैसी
बड़ी भोली बड़ी प्यारी वो बच्चों की ख़ता जैसी
बड़ी सादा ज़ुबां आँखें, बड़ी पुख़्ता बयां आँखें
न जाने क्या थी वो इक चीज़ आँखों में हया जैसी
वो पल में रूठ जाना और ख़ुद ही मान भी जाना
बड़ी नादान थी वो कमसिनी की इंतिहा जैसी
वो उसके लफ़्ज़ फूलों की बिखरती ख़ुशबुओं जैसे
वो उसकी बात करने की अदा बादे सबा जैसी
वो उसके नर्मो-नाज़ुक लब किसी ताज़ा कली जैसे
लबों पर खेलती मुस्कान वो चंचल हवा जैसी
शरारत से कभी हँसना कभी कांधे पे सर रखना
वो हर अंदाज़ में पाकीज़ग़ी अहदे-वफ़ा जैसी
मैं उसकी याद को दिल से जुदा कर ही नहीं पाता
तमन्नाओं के हाथों पर है वो रंगे हिना जैसी
मुझे ऐ काश फिर दीदार हो जाए कहीं उसका
कहीं मिल जाए मुझको फिर से वो दिल की दुआ जैसी