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वो इत्तेफ़ाक़ से रस्ते में मिल गया था मुझे / अख़्तर अंसारी

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वो इत्तफ़ाक़ से रस्ते में मिल गया था मुझे
मैं देखता था उसे और वो देखता था मुझे

अगरचे उसकी नज़र में थी न आशनाई<ref>दोस्ती,प्यार की भावना</ref>
मैं जानता हूँ कि बरसों से जानता था मुझे

तलाश कर न सका फिर मुझे वहाँ जाकर
ग़लत समझ के जहाँ उसने खो दिया था मुझे

बिखर चुका था अगर मैं, तो क्यों समेटा था
मैं पैरहन<ref>पहनने वाला कपड़ा</ref> था शिकस्ता<ref>फटा हुआ</ref> तो क्यों सिया था मुझे

है मेरा हर्फ़-ए-तमन्ना<ref>उम्मीद भरे शब्द</ref>, तेरी नज़र का क़ुसूर
तेरी नज़र ने ही ये हौसला दिया था मुझे

शब्दार्थ
<references/>