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वो एकदम अलग-सी है / मनीष मिश्र

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वो एकदम अलग-सी हैं ।
वो उलझाती है ठंड के चौकोर फंदो को सलाइयो में
बुनने के लिए स्वेटर के साथ सर्दियाँ
घोलती है बारिश की बंदों मे रंग
उगाने के लिए एक सतरंगी इन्द्रधनुष ।

मैं अपनी गर्मियो मे उसके पास जाता हूँ
और उसकी बारिश में भीग जाता हँ ।

उसकी अभिव्यक्ति की स्लेट अजीब सी है
वो किसी लय को आरोह में गाती है
और अचानक चुप में लिपट जाती है

वो अपनी खनखनाती खिलखिलाहटो के पड़ोस में
अपनी निराशाओ का दीप जलाती है ।

मै घर लौटते तोतों वाली शाम में उसके पास जाता हूँ
और उसकी धूप मे झुलस जाता हूँ।