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वो एक बार तबीअत से आजमाए मुझे / वीनस केसरी
Kavita Kosh से
वो एक बार तबीअत से आजमाए मुझे
पुकारता भी रहे और नज़र न आए मुझे
मेरी अना के मुक़ाबिल नज़र जो आए मुझे
मैं डर रहा हूँ कहीं वो न हार जाए मुझे
मुझे समझने का दावा अगर है सच्चा तो
मैं उसको चाहता हूँ, अब 'वही' बताए मुझे
मनाने रूठने के खेल में तो तय ये था
मैं रूठ जाऊं, वो हर हाल में मनाए मुझे
वो मुफ्त में मुझे हासिल नहीं है, तो वो भी
मुहब्बतों के हवाले से ही कमाए मुझे
मैं सुब्हो शाम पढ़े हूँ उसे फ़साने सा
वो हर वरक पे मनाज़िर नए दिखाए मुझे