भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वो कलाम नहीं, कमाल था / प्रवीण कुमार अंशुमान

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वो कलाम नहीं,
कमाल था
मानवतावाग के प्रतिपादन में
पूरा एक धमाल था,
जाति, धर्म से ऊपर
सख़्त एक ढाल था
उसकी शिक्षा में
सिद्धांतों का तो सवाल था,
उसका जीवन देखो
शिखर का एक काल था,
आया कितना ज़्यादा
जीवन में उसके भी जंजाल था,
पर कभी नहीं वो हारा
उसका ऐसा हाल था,
उसके माथे पर लिखा हुआ
‘अनोखा ये भारत का लाल था’,
वो कोई और नहीं
ए.पी.जे. अब्दुल कलाम था ।