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वो कहते थे / शीतल वाजपेयी

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वो कहते थे हमें देश हित
दीपक बन कर जलना होगा।
अपना स्वार्थ किनारे रखकर,
कदम मिलाकर चलना होगा।

भारत माता की हालत पर
कवि मन फूट-फूटकर रोया।
फिर संसद के गलियारों में
उसने राष्ट्र धर्म को बोया।
पाञ्चजन्य को शंख बनाकर
धर्मयुद्ध का बिगुल बजाया।
फिर श्यामा प्रसाद जी के सँग
सुंदर ढँग से संघ सजाया।।
अंत समय वे उनसे बोले-
स्वप्न हमारे पूरे करना।
सत्ता की दलदल में भी तुम
कमल सरीखा हरदम खिलना।।
कुंदन सा बनने की खातिर
तुमको तपकर गलना होगा।
अपना स्वार्थ किनारे रखकर,
कदम मिलाकर चलना होगा

सच्चाई की लिये संपदा
वो फकीर राजा बन आया।
हाथ मिलाया जब कलाम से
शक्ति मिली जन-जन हर्षाया।
विश्व मंच पर हिंदी को पहचान
दिलाने वाले वो थे।
जन-जन के मन में हिंदी को
मान दिलाने वाले वो थे।
उनसे जाना संघर्षो से लोहा
लेना क्या होता है।
मझधारों में नाव फँसी जो
उसको खेना क्या होता है।
कहा उन्होंने हार नहीं अब,
हमें जीत में ढलना होगा।
अपना स्वार्थ किनारे रखकर,
कदम मिलाकर चलना होगा।

जब वो कहते ठनी मौत से,
तब-तब अक्सर वो ही हारी।
काल हुआ नतमस्तक बोला-
वाह हमारे अटल बिहारी।
उनके आदर्शों पर चलना ही
सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
कविकुल के अधिपति के चरणों
में अर्पित काव्यांजलि होगी।
उनकी कविता,उनकी बातों
को आचरण बनाना होगा।
सपनों को साकार बनाकर
भारतवर्ष सजाना होगा।
अगर अटल सा बनना है तो
पीड़ाओं में पलना होगा।
अपना स्वार्थ किनारे रखकर,
कदम मिलाकर चलना होगा।