Last modified on 12 अप्रैल 2017, at 12:32

वो काली लड़की / मंजुश्री गुप्ता

जमाना कनज़्यूमरिज़्म का
विज्ञापन का!
अब और कहाँ से लाये?
गोरी चमड़ी की मखमली पैकिंग
सो मैरेज मार्किट में
नहीं बिक पाती है
वो काली लड़की

कोशिश करती है
क्वालिटी बढ़ाने की
सो मोटी किताबों के
महीन अक्षरों में
सर खपाती है
वो काली लड़की

इस ईमानदार कोशिश में
चश्मे का नम्बर बढ़ाती है
ओवरएज और
ओवर क्वालिफाईड हो जाती है
और मैरेज मार्किट में
रिजेक्ट हो जाती है
वो काली लड़की

फ़िर अपनी राह खुद बनती है
और जिंदगी की हर मुसीबत से
खुद ही टकराती है
और दूसरों को भी
जीने की राह दिखाती है
वो काली लड़की