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वो क्या जाने कौन बुरा है, कौन है अच्छा, आलम जी / बल्ली सिंह चीमा

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कवि मित्र ज़हूर आलम को सम्बोधित

वो क्या जाने कौन बुरा है, कौन है अच्छा, आलम जी !
वर्दी देख के डर जाता है, मेरा बच्चा, आलम जी !

दिन में आएँ, रात में आएँ, वर्दी में, या बेवर्दी,
हथियारों से लैस हैं वो और गाँव निहत्था, आलम जी !

सूनी गलियाँ, सहमे-से घर, गाँव लगे बेगाना-सा,
दहशत से थर्रा उट्ठा है, चप्पा-चप्पा आलम जी !

डर कर कोई क़तरे को ही सागर भी कह सकता है,
सागर सागर होता है और क़तरा क़तरा आलम जी !

आम शरीफ़ मेहनती लोग डरे-डरे-से हैं 'बल्ली',
निर्भय होकर घूम रहा है चोर-उचक्का, आलम जी !