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वो खफा है तो कोई बात नहीं / ख़ुमार बाराबंकवी
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वो खफा है तो कोई बात नहीं
इश्क मोहताज-ए-इल्त्फाक नहीं
दिल बुझा हो अगर तो दिन भी है रात नहीं
दिन हो रोशन तो रात रात नहीं
दिल-ए-साकी मैं तोड़ू-ए-वाइल
जा मुझे ख्वाइश-ए-नजात नहीं
ऐसी भूली है कायनात मुझे
जैसे मैं जिस्ब-ए-कायनात नहीं
पीर की बस्ती जा रही है मगर
सबको ये वहम है कि रात नहीं
मेरे लायक नहीं हयात "ख़ुमार"
और मैं लायक-ए-हयात नहीं