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वो ख़ुदा है तो वह नायाब नहीं हो सकता / विजय 'अरुण'
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वो ख़ुदा है तो वह नायाब नहीं हो सकता
हर जगह है वुही कमयाब नहीं हो सकता।
हाँ वह दुश्वार तो है फिर भी है मुम्किन ऐ दोस्त
दूर अब कोई भी महताब नहीं हो सकता।
है हक़ीक़त तो हक़ीक़त, है अगर ख़ाब तो ख़ाब
वो हक़ीक़त है तो फिर ख़ाब नहीं हो सकता।
नाख़ुदा और ख़ुदा दोनों संभालें जिस को
वो सफ़ीना कभी ग़रक़ाब नहीं हो सकता।
बाग़बां ख़ून पसीने से न जिस को सींचे
बाग़े शाही भी हो शादाब नहीं हो सकता।
हर भंवर से है बड़ा सोच समुन्दर का जहाज़
ये सफ़ीना तहे गिरदाब नहीं हो सकता।
लाख अहबाब करें दुश्मनी मुझ से ऐ 'अरुण'
फिर भी मैं दुश्मने अहबाब नहीं हो सकता।