भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वो ख़ुराफ़ात पर उतर आया / चाँद शुक्ला हादियाबादी
Kavita Kosh से
वो ख़ुराफ़ात पर उतर आया
अपनी औक़ात पर उतर आया
भेड़िया रूप में था इन्साँ के
एकदम ज़ात पर उतर आया
जिसकी नज़रों में सब बराबर थे
ज़ात और पात पर उतर आया
वो फ़राइज़ की बात करता था
इख़्तियारात पर उतर आया
हुक़्मे-परवर-दिगार मूसा के
मोजिज़ा हाथ पर उतर आया
चाँद जब आया अब्र से बाहर
नूर भी रात पर उतर आया