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वो गहरे समुद्र की केबलें / रुडयार्ड किपलिंग / तरुण त्रिपाठी

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{..'किपलिंग' विश्व भर से संपर्क जोड़ देने वाली समुद्र में बिछी केबलों में विश्व-एकता का विश्वास रखते थे..}

जहाज़ों के टुकड़े हमारे ऊपर विलीन हो जाते हैं; उनके भग्नावशेष दूर से नीचे गिर जाते हैं
नीचे अँधेरे में, घुप्प अँधेरे में, जहाँ अंधे श्वेत समुद्री साँप हैं
यहाँ कोई आवाज़ नहीं है, आवाज़ की कोई गूंज नहीं, गहराई के वीराने में
या कीचड़ के विशाल भूरे समतलों में जहाँ रेंगती हैं सीप-जड़ी केबलें

यहाँ संसार के गर्भ में–यहाँ पृथ्वी की बंध-पसलियों पर
शब्द, और लोगों के वे शब्द, लहराते और फड़फड़ाते और टकराते हैं―
चेतावनी, दुख और लाभ, अभिवादन और आनंद
कि एक शक्ति ऊधम करती है उस स्थिर में, जिसके न पाँव हैं न ध्वनि

उन्होंने ये कालातीत चीज़ें जगा दी हैं, बिता दिए हैं अपने पिता के ज़माने
मिला रहे हाथ अँधेरे में, एक मेल सूरज के पार से
शांत! लोग आज निरे कीचड़ की रद्दी पर से संचार करते हैं
और ये नए शब्द दौड़ते हैं उनके बीच: फुसफुसाते,'चलो एक हो जाएँ!'