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वो ग़ज़ल वालों का असलूब समझते होंगे / बशीर बद्र

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वो ग़ज़ल वालो का असलूब<ref>शैली</ref> समझते होंगे
चाँद कहते है किसे ख़ूब समझते होंगे

इतनी मिलती है मिरी ग़ज़लों से सूरत तेरी
लोग तुझको मेरा महबूब समझते होंगे

मैं समझता था मुहब्बत की ज़बाँ ख़ुश्बू है
फूल से लोग उसे ख़ूब समझते होंगे

देख कर फूल के औराक़ <ref>पन्ने</ref> पे शबनम कुछ लोग
तेरा अश्कों भरा मकतूब<ref>ख़त</ref> समझते होंगे

भूल कर अपना ज़माना ये ज़माने वाले
आज के प्यार को मायूब<ref>बुरा ,ऐबदार</ref> समझते होंगे

शब्दार्थ
<references/>