वो गा रहे हैं डूब के जज़्बात में ग़ज़ल / रविकांत अनमोल
वो गा रहे हैं डूब के जज़्बात<ref>भावनाएँ</ref> में ग़ज़ल
या जगमगा रही है सियह<ref>काली</ref> रात में ग़ज़ल
होंटों को उनके छू के जो निकली है झूमती
सीधी उतर गई वो मेरी ज़ात में ग़ज़ल
कुछ आप ही के शोख़<ref>शरारती</ref> जवाबों में थी छुपी
बाक़ी निहां<ref>छुपी</ref> थी मेरे सवालात में ग़ज़ल
लफ़्ज़ों से क़ीमती कहीं मोती नहीं मिले
जी चाहता है भेज दूं सौग़ात में ग़ज़ल
मैंने सुनी है आपकी हर बात इस तरह
जैसे छुपी हो आपकी हर बात में ग़ज़ल
दिल का लहू जला के ही होती है रौशनी
मिलती नहीं है दोस्तो ख़ैरात में ग़ज़ल
इतना कहाँ है वक़्त कि कुछ बात हो सके
होगी कहां से आज के हालात में ग़ज़ल
सुनिए 'ग़ज़ल'<ref>तेलुगू के प्रसिद्ध गायक डॉ ग़ज़ल श्रीनिवास</ref> से आज ही 'अनमोल' की ग़ज़ल
शामिल नहीं जो आपकी आदात<ref>आदत का बहुवचन</ref> में ग़ज़ल