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वो गुनगुनाते रास्ते ख्वाबों के क्या हुये / शीन काफ़ निज़ाम

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वो गुनगुनाते रास्ते ख्वाबों के क्या हुए
वीरान क्यूं है बस्तियां बाशिंदे क्या हुए

वो जागती जबींने कहां जो के सो गईं
वो बोलते बदन जो सिमटते थे क्या हुए

जिन से अंधेरी रातों में जल जाते थे दिये
कितने हसीन लोग थे, क्या जाने, क्या हुए

खामोश क्यूं हो कोई तो बोलो जवाब दो
बस्ती में चार चांद-से चेहरे थे, क्या हुए

हम से वो रतजगों की अदा कौन ले गया
क्यूं वो अलाव बुझ गये वो किस्से क्या हुए

पूरे थे अपने आप में आधे-अधूरे लोग
जो सब्र की सलीब उठाते थे क्या हुए

मुम्किन है कट गयें हो वो मौसिस की धार से
उन पर फुदकते शोख परिन्दे थे क्या हुए

किसने मिटा दिये है फसीलों के फासले
वाबस्ता जो थे हम से वो अफसाने क्या हुए

खंभो पे ला के किस ने सितारे टिका दिये
दालान पूछते है कि दीवाने क्या हुए

ऊंची इमारतें तो बड़ी शानदार हैं
लेकिन यहां तो रैन बसेरे थे क्या हुए