भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वो गुलदस्तों में अशआर लगाता है / मुज़फ़्फ़र हनफ़ी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वो गुलदस्तों में अशआर लगाता है
और यहाँ लहजे पर धार लगाता है

ग़रक़ाबौं नैं देखा दरया का इन्साफ
ज़िंदा मुर्दा सब को पार लगाता है

कौन ज़माने को समझाए चलने दो
चलने वाले ही को आर लगाता है

कहलाते हैं दुनिया भर में ज़ले अल्लाह
झाता उन पर खिदमत गार लगता है

खुश्बू क़ैद नहीं रहै सकती गुलशन में
देखें वो कितनी दीवार लगाता है

माज़ी से ता हाल मुज़फ्फर ज़ालिम ही
ताज पहनता है दरबार लगाता है