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वो घुप अँधेरे में भी ये कमाल कर देखे / जहीर कुरैशी

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वो घुप अँधेरे में ये भी कमाल कर देखे ।
पुरानी यादों के जुगनू निकाल कर देखे ॥

युवा ना कर सका वो साठ साल के तन को ।
यूँ उसने काले खिज़ाबों से बाल कर देखे ॥

वो सोन मछरी चाहती है स्वयं ही फँस जाना ।
कोई तो उसके लिए जाल डाल कर देखे ॥

मैं किसके साथ रहूँ इसके फैसले के लिए ।
तमाम लोगों ने सिक्के उछाल कर देखे ॥