भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वो घुप अँधेरे में भी ये कमाल कर देखे / जहीर कुरैशी
Kavita Kosh से
वो घुप अँधेरे में ये भी कमाल कर देखे ।
पुरानी यादों के जुगनू निकाल कर देखे ॥
युवा ना कर सका वो साठ साल के तन को ।
यूँ उसने काले खिज़ाबों से बाल कर देखे ॥
वो सोन मछरी चाहती है स्वयं ही फँस जाना ।
कोई तो उसके लिए जाल डाल कर देखे ॥
मैं किसके साथ रहूँ इसके फैसले के लिए ।
तमाम लोगों ने सिक्के उछाल कर देखे ॥