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वो चित्रों से बोल रहा हूँ / कमलेश द्विवेदी

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तेरी यादों की अलबम मैं धीरे-धीरे खोल रहा हूँ।
जो कुछ तुझसे नहीं कह सका वह चित्रों से बोल रहा हूँ।

तूने मुझसे कभी कहा था-
हरदम साथ रहेगा मेरे।
पर अब चारों ओर स्वयं के
खींच लिये हैं कितने घेरे।
घेरों ने जो दर्द दिए हैं वे अश्कों में घोल रहा हूँ।
जो कुछ तुझसे नहीं कह सका वह चित्रों से बोल रहा हूँ।

तू घेरों में क़ैद हो गया
इसमें ग़लती तेरी ही है।
लेकिन कभी-कभी लगता है-
कोई ग़लती मेरी भी है।
तू अपने को जाँच, स्वयं को मैं भी आज टटोल रहा हूँ।
जो कुछ तुझसे नहीं कह सका वह चित्रों से बोल रहा हूँ।

घेरों से बाहर आना है
तो फिर अपने पाँव बढ़ा दे।
या मैं तोड़ सकूँ घेरों को
तू मुझको इतना मौका दे।
इसीलिए घेरों के बाहर-बाहर अब तक डोल रहा हूँ।
जो कुछ तुझसे नहीं कह सका वह चित्रों से बोल रहा हूँ।